दुनिया भर के देशों में टैक्‍सी हो या फिर दूसरे पब्लिक कन्‍वेंस आमतौर पर इन्‍हें चलाने का काम पुरुष ही करते हैं। कुछ देश तो ऐसे भी हैं जहां पब्लिक कन्‍वेंस तो क्‍या महिलाओं को अपनी पर्सनल गाड़ी चलने तक की भी परमीशन नहीं होती है। मगर कुछ देश ऐसे भी है जहां महिलाओं टैक्‍सी और कैब चलते देखा जा सकता है। भारत में अब तक यह कलचर नहीं था। देश में महिलाओं को गाड़ी चलाने की परमीशन तो थी मगर कैब, टैक्‍सी  और ऑटो जैसे पब्लिक कन्‍वेंस महिलाएं नहीं चला रही थीं। मगर अब ऐसा नहीं है। भारत के कई शहरों में अब महिला कैब या ऑटो ड्राइवर्स देखने को मिल जाती हैं। इसके पीछे एक वजह यह भी है कि भारत में महिलाओं को लेकर क्राइम की संख्‍या बहुत बढ़ गई है। महिलाओं को सुरक्षा देने के उद्दश्‍य से भारत में महिला ड्राइवरों की संख्‍या बढ़ाने का काम चल रहा है। इसी के तहत कैब और ऑटो चलाने वाली कई महिलाएं लोकप्रिय हो चुकी हैं। आज हम ऐसी ही कुछ महिला ड्राइवर्स की बात करेंगे, जिन्‍हों ड्राइविंग को पैशन नहीं प्रोफैशन की तरह चुना है। 
women get security by women cab drivers  ()

हैदराबाद की लावान्‍या 

लावान्‍या हैदराबाद में रहती हैं और कुछ महीनों पहले ही उन्‍होनें ओला कैब सर्विस कंपनी को ज्‍वाइन किया है। इस कंपनी में वो मैनेजर या ऑपरेटर नहीं हैं बल्कि लावान्‍या इस कंपनी में एक कैब ड्राइवर हैं। जी हां, लावान्‍या एक महिला ड्राइवर हैं, जो कैब चलाती हैं। इस प्रोफेशन को उन्‍होंने किस मजबूरी नहीं बल्कि अपनी चाहत से चुना है। बचपन से ही ड्राइव करना लावान्‍या का पैशन था। पढ़ाई खत्‍म होने के बाद लावान्‍या ने तय किया कि वह लोगों को कार चलाना सिखाएंगी। मगर लावान्‍या ने कभी नहीं सोचा था कि कार चलाते- चलाते एक दिन वह इस पेशे को अपना करियर ही बना चलेंगी। वह कहती हैं, ' महिलाएं यही सोचती हैं कि कैब और ऑटो चलना उनके बस की बात नहीं। कुछ महिलाएं इसे पुरुषों का पेशा समझती हैं। यह सच भी है। महिलाओं के इस पेशे में आने से पहले पुरुषों का ही इस फील्‍ड में वर्चस्‍व था। मगर अब ऐसा नहीं है। महिलाएं भी ड्राइवर बन सकती हैं और यह पेशा उतना ही अच्‍छा है जितना महिलाओं के लिए दूसरे पेशे होते हैं। मुझे लगता है मैं एक ऐसा काम कर रही हूं जो महिलाओं को एक नई दिशा दिखाएगा और हमारी आगे आने वाली पीढि़यों में बेटियों के भविष्‍य को बेहतर बनाएगा।'
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गांधीनगर की जासुबेन रबारी 

गुजरात की राजधानी गांधीनगर के बेहद कंजरवेटिव परिवार से नाता रखने वाली जासुबेन रबारी पेशे से ऑटो ड्राइवर हैं। सुन कर थोड़ा अटपटा सा लगता है। उनके परिवार के लोगों को भी ऐसा ही लगा था जब जासुबेन ने यह तय किया था कि वो ऑटो चलाएंगी। कई रिश्‍तेदारों ने तो उनसे रिश्‍ता भी तोड़ लिया क्‍योंकि वो लोग इस पेशे को बहुत ही खराब समझते थे और महिलाओं के लिए तो यह पेशा उनकी नजरों में बिलकुल भी सही नहीं था। मगर जासुबेन ने लोगों की परवाह नहीं कि और अपने काम में आगे बढ़ती गईं। वह बताती हैं, ' मैं बहुत दिनों से काम की तलाश में थी क्‍योंकि मुझे अपने घर को फिनैंशियली सपोर्ट करना था। ऐसे में ओला मेले में मुझे राह दिखाई दी और मैंने खुद को वहां ड्राइविंग के लिए रजिस्‍टर करा दिया। इसके बाद मुझे बहुत लोगों के ताने सुनने पड़े कई लोगों ने मुझ से मेरे परिवार से बात तक करना बंद कर दिया। उनकी नजरों में महिलाओं को ऐसे बाहर निकल कर ऑटो नहीं चलाना चाहिए। इसके साथ ही मेरे पति को भी मेरी ड्राइविंग पर शक था मगर मेरी बेटी ने जब कहा कि मैं आपने पति से ज्‍यादा अच्‍छी ड्राइंविंग करती हूं तो मेरा कॉन्‍फीडेंस लेवल और भी बढ़ गया।' आज जासूबेन ऑटो चला रही हैं और अपने घर को फिनैंशियली सपोर्ट भी कर रही हैं। 
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दिल्‍ली की शांति शर्मा 

दिल्‍ली की शांती शर्मा एक छोटी सी कैब कंपनी ‘कैब्स फ़ॉर वीमेन बाई वीमेन’ चलाती हैं। वह खुद तो ड्राइव करती ही हैं उनके साथ ही आठ महिला ड्राइवर और हैं जो कैब चलाती हैं। शांती की कंपनी केवल महिला यात्रियों को ही कैब सर्विस प्रोवाइड कराती है। 31 वर्षीय शांति शर्मा कहती हैं, “ भले ही लोगों को महिलाओं का कैब चलाना पसंद न हो मगर जब मैं सड़क पर टैक्सी चला रही होती हूं तो बहुत गर्व महसूस करती हूं क्योंकि ये कैब सर्विस महिलाओं के लिए है और मैं भी एक महिला हूं. हमारे काम से दिल्ली की महिलाओं को मदद मिल रही है. हम उन्हें सुरक्षा दे रही हैं. अगर एक महिला दूसरी महिला के साथ सेफ महसूस कर रही है तो इसमें खराब क्‍या है। भारत में महिलाओं के कार चलाने पर भी कोई पाबंदी नहीं है, तो फिर लोग क्‍या सोच रहे हैं इससे क्‍या मतलब। ” दिल्ली में 16 दिसंबर को बस में छात्रा के साथ हुई सामूहिक बलात्कार और हत्या की घटना के बाद से इस कैब की सभी महिला ड्राइवर बहुत व्यस्त हो गई हैं.शांति शर्मा कहती हैं, “उस घटना के बाद से हमारा काम बढ़ गया है. जो महिलाएं दूसरी कैब सर्विस की सेवा लेती थीं वो भी अब हमें बुलाने लगी हैं.”


  • Anuradha Gupta
  • Her Zindagi Editorial